क्या वेंटीलेटर हटा कर सद्गति दी जा सकती है ?

Two medical workers each holding a respirator.

क्या वेंटीलेटर हटा कर सद्गति दी जा सकती है ?

निकेत काले

वैसे तो किसी भी देश में इच्छा मृत्यु का भी प्रावधान नहीं है , परन्तु कोरोना के चलते अमेरिका में डॉक्टर्स बड़ी संख्या में वेंटीलेटर की कमी से जूझ रहे हैं , उनके सामने एक बड़ा प्रश्न चिन्ह आ खड़ा हुआ है कि अगर वैज्ञानिकों की माने तो शायद आने वाले कुछ महीनो में अमेरिका में लगभग 1 लाख से 2.4 लाख कोरोना संक्रमित जीवन मृत्यु से संघर्ष की स्थिति में आ सकते हैं, तो इस घडी में क्या किया जाये .

अमेरिका के राष्ट्रपति महोदय ने कार बनाने वाली कम्पनीज को वेंटीलेटर बनाने का निर्णायक आदेश दिया है , परन्तु वे भी अगले १०० दिनों में मात्र ५०००० वेंटीलेटर बनाने की क्षमता रखते हैं | आज अमेरिका के डॉक्टर्स ने सरकार पर दबाव बनाना प्रारंभ कर दिया है की उन्हें निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी जावे कि वे अपने विवेक का उपयोग करके जिनके जीवन के बचने की सबसे कम संभावना है, उन्हें वेंटीलेटर सुविधा से वंचित कर , उनके वेंटीलेटर किसी अन्य को लगा सकें जिनके प्राणों की रक्षा अभी भी की जा सकती है | और ऐसी परिस्थिति में उनके ऊपर किसी की मृत्यु का कारक होने के आरोप से इम्युनिटी प्रदान की जावे |

The New York chapter of the American College of Physicians, a national organization of internists, wrote to Gov. Andrew M. Cuomo last week, asking that he issue an executive order granting doctors immunity from liability for the decisions they make “when the need for allocation of ventilators results in some patients being denied access.” (NewYork Times)

डॉक्टर्स की मानसिक स्थिति की मात्र कल्पना की जा सकती है , विश्व की सर्वश्रेष्ट चिकित्सकीय सुविधा देने वाले देश में निर्णय का संकट आ खड़ा हुआ है | हमारे पास याद करने को अनेक उदाहरण हैं की हमारे बॉलीवुड से और राजनीती से कितने आसन्नमृत्यु उनकी शरण में जाकर पूर्णतय स्वस्थ होकर वापिस जीवनलाभ कर रहे हैं | पर आज चिकित्सा के जगत में सक्रिय ऐसी संस्थाएं कोरोना के भविष्य को लेकर इतनी चिंतित हैं की इम्युनिटी मांग रही हैं | शायद किसी मरीज़ की मृत्यु ही डॉक्टर के लिए सबसे दुखकारी क्षण होता होगा , परन्तु आज उनको भी मृत्यु का कारक होने का निर्णय लेने का अपराधबोध सता रहा है |

यदि हम इटली की कल्पना करें तो इंडिपेंडेंट की रिपोर्ट के अनुसार इटली के अति-कोरोना ग्रस्त क्षेत्रों में लगभग ३ हफ्ते पहले ही डॉक्टर्स cut-off-age के आधार पर मरीजों को सुविधाओं से वंचित कर रहे थे ?

“I know from talking to colleagues in Lombardia, the most affected region in Italy, that they are using a cut off of 65-years-old in case of pre-existing comorbidities* (burden of other illness or disease). (https://tinyurl.com/r8y6x5f – १३ मार्च २०२०)

क्या परिस्थिति की भयावहता कि कल्पना की जा सकती है ? जिन कोरोना रोगीओं को कोरोना के अलावा कुछ ऐसे रोग है जैसे कैंसर इत्यादि , उन्हें जीवन के अंतिम क्षणों में कितनी पीड़ा भोगनी पड़ती है , ये लेख पढने वाले जिन परिवार ने ये भोगा है उन्हें अच्छे से आभास है | जीवन के अंतिम क्षणों में , मृत्यु को थोडा सुखकर या आरामदायक बनाने वाले उपकरण अगर छीन लिए जावें और उन्हें आखरी सांस तक उन असीम कष्टों को भोगने के लिए बेसहारा छोड़ दिया जावे , तो शायद उस देश के लिए स्वतंत्रता , आर्थिक उन्नति , प्रगति सारी बातें बेमानी हो जाती है | उन नागरिकों का सोचिये जिन्होंने शायद अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा उस राष्ट्र को प्रगति के पथ पर ले जाने के लिए समर्पित किया हो , उनको अपने अंतिम क्षणों में वेंटीलेटर तक की सुविधा से वंचित कर दिए जाने का फैसला उनके डॉक्टर के निर्णय पर आ कर टिका हो ? विश्व का स्वर्ग कहलाने वाले अपने ही देश में आखरी सांसें रुकने तक वो बेसहारा नागरिक दरअसल उन गैरजिम्मेदार नागरिकों के शिकार हैं , जिन्हें lockdown में घर में रहने कहा गया था पर जो नहीं माने?

यदि भारत की कहे तो आज ही एसोसिएशन ऑफ़ इंडियन मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री के राजीव नाथ ने बताया है की आज देश में केवल ५५००० वेंटीलेटर हैं और शायद मई माह तक इस देश में 2 लाख वेंटीलेटर की आवश्यकता हो सकती है | भारतीय कार कम्पनीज अब इस और ध्यान दे रही है और हर माह ५०००० वेंटीलेटर उपलब्ध करने का आश्वासन दे रही है | मैं तो परमात्मा से केवल प्रार्थना कर सकता हूँ की डॉक्टरों पर थूकने वाले , परिस्थिति की भयावहता को समझे , कहीं ये न हो की हमारे देश में किसी परिवार के बड़े बूढ़े जिन्हें कोरोना नहीं भी है , वो भी वेंटीलेटर न मिलने के कारण अपने जीवन के बचे हुए कुछ वर्ष खो दें ? क्योंकि उनके हिस्से का वेंटीलेटर किसी और को बचाने में इस्तेमाल हो जाये |

अभी हाल में एक नयी थ्योरी सामने आयी है वो emotional-distancing को लेकर है | कहते हैं की कोरोना के कारण समाज में भावनात्मक परिवर्तन आ रहे है ? विश्व का प्रगतिशील समाज जो खुल कर मिलने , गले लगाने में विश्वास रखता है , उनकी भावनाओं में और व्यवहार में परिवर्तन आ रहा है | जैसा अब लोग एक दूसरे से मिलने में कतराते हैं , जल्द ही किसी को छूना अशिष्टता माना जाने लगेगा | परिवार में सबके पैर छूने की परंपरा रखने वाले हमारे देश में भी भावनाओं में बदलाव आना संभव है | पर मुझे चिंता उन आक्रामक भावनाओं की है , जहाँ सही इलाज न मिलने पर आये दिन हम अस्पताल में तोड़फोड़ करने में विश्वास रखने लगे हैं , आज इस परिस्थिति में जब विश्व में डॉक्टर मरीजों को सब कुछ जानते हुए वेंटीलेटर से वंचित करने पर ईश्वर से क्षमा मांगने के लिए हाँथ जोड़े खड़े है , हम अभी भी अपनों से घर में रहने की लिए निवेदन करने में जुटे हुए है | पर भारत एक अध्यात्मिक देश है , अंत में गीता के उस श्लोक का अंग्रेजी अनुवाद लिख अपनी बात समाप्त करता हूँ , जिस आस्था पर हमारा अनंत विश्वास है |

न जायते म्रियते वा कदाचि- न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः । अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो- न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥
भावार्थ : यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न मरता ही है तथा न यह उत्पन्न होकर फिर होने वाला ही है क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, सनातन और पुरातन है, शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता॥

Know this Atma, unborn undying,
Never ceasing, deathless birthless,
unchanging for ever,
How can it die , the death of the Body?


Niket Kale
BLSc LLB MBA DCPA MDSE

Email: niketkale@gmail.com
Dated: 02.04.2020