दिमाग की घंटी बजाओ | Go Corona Go !

दिमाग की घंटी बजाओ |

– निकेत काले –

22 March 2020

पिछले १० दिनों में कोरोना से ग्रसित लोगों की संख्या 435% बढ़ कर 300 हो चुकी है | केवल इसी गति से अगर मात्र गणितीय विचार करें तो अगले 20 दिन में लाखों का आंकड़ा प्रोजेक्ट हो रहा है |

यदि सारे पाश्च्यात देशों का आंकड़ा देखें तो पहले 4 हफ़्तों में इसके बढ़ने की गति बहुत तेज़ दिखाई देती है | अभी हमारे पास लैब पर्याप्त नहीं हैं | आइसोलेशन quarantine के लिए जो अस्पताल निर्धारित किये गए हैं, दिल्ली और मुंबई की बात छोड़ दें तो अन्य शहरों में उनमे कोई रहना नहीं चाहता क्योंकि उनकी व्यवस्था १४ दिन रहने लायक नहीं है, शायद विदेश से लौट कर आने वाले हमारे सम्पन्न भ्राता वहां एक दिन भी गुजरना नहीं चाहते, इसलिए जांच से बचते हैं | हमारे शहर में जब आज ८०० लोग केवल जांच करने पहुँच गए तो अस्पताल की सारी व्यवस्था चरमरा गयी | अमेरिका में निर्देश हैं की सब घर पर ही रहें , केवल जिन्हें सर्दी खांसी के बाद सांस लेने में तकलीफ हो रही हो वो अस्पताल आयेंगे तभी कोरोना की जाँच भी कर ली जाएगी | आपके घर में रहने में ही सबका भला है |

आज सोशल मीडिया में ५ बजे के घंटा नाद की जय जय करने वालों की भीड़ लगी हुई है , शायद मोदी जी पढ़ लेंगे तो माथा चूम लेंगे ऐसा अहसास किया जा रहा है, पर इस बात पर कोई चर्चा नहीं करना चाहता की कितनों ने तो सड़क पर इकट्ठे आकर थाली बजायी | माननीय प्रधान मंत्री अनेक बार बोल चुके है की इस आपदा का समाधान अकेले सरकार नहीं कर सकती और समाज का सहयोग आवश्यक है , और समाज घर में टीवी देख कर और ५ बजे घंटी बजा कर फिर सरकार के भरोसे हो जाने को तैयार है | चरक, बैधनाथ, डाबर, हिमालया और भगवन श्री रामदेव बाबा अभी तक किसी यूनिफाइड फ़ॉर्मूले को सामने लेकर नहीं आ पाए है, की चलो हमारी हज़ार वर्ष की परंपरा की परीक्षा की घडी है | इस एपिडेमिक के शांत हो जाने के बाद कमजोरी दूर करने की दवाओ के इश्तेहारों से अखबार भर जाने वाले हैं | शहरों में मास्क नहीं हैं , sanitizer खत्म है , पर तारीफ के पुल बांध कर हम सच्चाई से हाँथ धो रहे हैं | IIT में अपने स्वयं के उपयोग के लिए वे sanitizer खुद बना रहे हैं | राज्य शासन या समाजसेविओं द्वारा कोई पहल नहीं है की फार्मेसी प्रशिक्षित संस्थाओं या व्यक्तियों को आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराके शहर में स्थानीय स्तर पर उन्हें जल्द सस्ते में बना ले और गाँव तक भी पहुंचा दे | WHO का sanitizer बनाने का फार्मूला मुफ्त उपलब्ध है | आज sanitizer खत्म हैं , कल शहर को कीटाणुरहित करने के लिए भारी मात्र में औषधि लगेगी, परसों हजारों की संख्या में चादरें, तकिये लगेंगे , १५ से २० दिन रखना है तो मछरदानी लगेगी , हमें विश्व का गारमेंट हब बनना है , इसी शहर में ५० से अधिक संस्थाये होंगी जो दवाएं बना सकती हैं तो वे disinfectants बनाने के लिए कब निर्देशित होंगी | कोरोना से मृत्यु होने पर अंतेष्टि में कोई आने तैयार नहीं है, हमारा विद्युत् शवदाह केंद्र कब सुधरेगा | ट्रेन बंद है , शहर की सीमा सील की हुई है , मान के चलिए की आपको कोई चेन्नई से ये सब बना के भेजने वाला नहीं है | क्या इन सबके लिए भी माननीय प्रधान मंत्री जी को रात आठ बजे टीवी पे आ कर बताना पड़ेगा |

शहर के डॉक्टर्स विडियो कॉल पर अपने परिवार से रोज़ बात करते होंगे पर वो अपने मरीजों के विडियो कॉल का जवाब कब देंगे, शायद यही वो समय है की जब शहर ही बंद है तो वो ऐसा कर दिखाएँ ताकि टेस्ट करने की भागम भाग रुक सके और सर्दी खांसी वाले घर में ही ठीक हो जाएँ | शहरों से लोग गाँव की और पलायान कर रहे है क्योंकि काम बंद है तो दिहाड़ी बंद है | महंगे अपार्टमेंट्स ले लो ऐसे करोड़ों के इश्तेहार देने वाले मौन हैं, काश की एक इश्तिहार देते की मत भागो हम है ना? | शायद आज की पीढ़ी ने लम्बे समय में कोई संघर्ष देखा नहीं है , १९७१ की लड़ाई के बाद पैदा हुई प्रजा ने महँगी कारों , टीवी , ब्रांडेड कपड़ों से अपना मन बहलाया है , उन्हें अहसास भी नहीं है की लड़ाई क्या होती है, भले वायरस से क्यों न हो , और उसकी कितनी बड़ी कीमत समय के साथ चुकानी पड़ती है | हर संघर्ष के बाद आपके स्टेटस में वृद्धि होती है , मतलब गरीब ज्यादा गरीब होता है और अमीर ज्यादा अमीर | पर एक तरह से अच्छा है हम सभी ताली के साथ दिमाग की घंटी भी बजाना सीख जायेंगे , क्योंकि अनुभव शायद सबसे मूल्यवान धरोहर है, जो विरासत में मिलने से बेहतर है की खुद कमा कर पायें | हो सकता है जब हम इस विपदा से उबरेंगे तो हमारे पास सबसे बड़ी संपत्ति होगी, हमारी नयी जनरेशन, जिसने विपत्तिओं से सबक सीखा हो मास्टरजी से नहीं | आज का सन्देश तो बस इतना ही है “कर भला तो घर भला”

धन्यवाद्,

२२.०३.२०२०

Niket Kale
niketkale@gmail.com