कैसी थी कालेपानी की सजा ?
– निकेत काले –
अंडमान की सेलुलर जेल या कालेपानी की सजा का तात्पर्य है ऐसी जेल जिसमे सजा पाने वालों को छोटे छोटे सेल या कमरे में एक दूसरे से अलग रखा जाता था. *वीर सावरकर ने इस जेल में दस वर्ष काटे*. स्वतंत्रता पाने के लिए जो अपार कष्ट सेनानियों ने भोगे है, आज की पीढ़ी को उसका अनुमान भी नहीं है ! स्वतंत्रता के बाद जो तुरंत सत्ता में चले गए उन्होंने वास्तव में जेलों में सामान्य कैदी जैसी सुविधाएँ भोगी थीं, बल्कि वास्तविकता ये है की राजनैतिक कैदी होने के कारण, उन्हें साधारण कैदियों से भी ज्यादा सुख सुविधाएँ मिलीं.
सावरकर सहित अनेक कैदी अंडमान की सेल्युलर जेल के साढ़े तेरह फीट लम्बी और मात्र सात फीट चौड़ी सेल में भारत भूमि को स्वतंत्र करने के लिए अत्याचार सहन कर रहे थे. सावरकर तो लगभग दो वर्ष बाद ये जान पाए थे की उनका भाई भी वहां किसी कोठरी में कैद है. इसी लिए इन्हें काल कोठरी कहा जाता था और अंदमान की सजा को काला पानी.
अंदमान के कैदियों को जूट की बनी हुई पोशाक पहनाई जाती थी, काला-पानी की सजा के दौरान अंग्रेज़ों की दी हुई यह पोशाक समुद्री-उमस में कैदियों की चमड़ी को तिल-तिल काटती थी एवं चमड़ी छिल जाने के कारण इन्फेक्शन हो जाता था और कई कैदियों की मृत्यु हो जाती थी. दिन में केवल तीन बार टॉयलेट का उपयोग करने की अनुमति थी. और उसके लिए भी अंग्रेज़ जेलरों के सामने गिडगिडाना पड़ता था. शाम छह बजे से सुबह छह बजे तक जेल में ताले लग जाते थे और टॉयलेट हेतु एक मिटटी का बर्तन दे दिया जाता था, जिसे कैदियों को खुद ही साफ़ भी करना पड़ता था. कैदियों को कोल्हू में जानवरों की जगह लगाया जाता था और तेल निकलवाया जाता था. आये दिन भीषण अत्याचार और फांसी दिया जाना तो आम बात थी. मनुष्य का मनुष्यों के प्रति घृणा और अपमान का इससे घृणित उदाहरण शायद और नहीं हो सकता था. कैदियों के प्रति अंग्रेजों की बर्बरता असीम थी.
ऐसे कालेपानी को भी थकाने वाले सावरकर ने अपनी कविताओं में *स्वतंत्रता को “भगवती” या देवी का स्वरुप* माना, जिसे पाने के लिए अपनी स्वतंत्रता दावं पर लगाई. काल-कोठड़ी में कैलंडर, लिखने पढने के लिए कागज़ कुछ भी नहीं मिलता था, तो अपनी दस हज़ार पंक्तियों की रचनाओं को कंठस्थ कर लिया. आज की पीढ़ी से बस इतना ही अनुरोध है की *लॉकडाउन को व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर आघात न मान कर इस देश की स्वतंत्रता का सम्मान कीजिये*, इसको पाने के लिये किये गए त्याग को जानिए. इस राष्ट्र की अस्मिता आपकी नैतिकता पर निर्भर है. यदि भगवती स्वरुप स्वतंत्रता बनाये रखना है तो देवतुल्य नैतिकता ही एकमेव पर्याय है.
जयोस्तुते श्रीमहन्मंगले। शिवास्पदे शुभदे
स्वतंत्रते भगवति। त्वामहं यशोयुतां वंदे
राष्ट्राचेचैतन्य मूर्त तूं नीतिसंपदांची
स्वतंत्रते भगवति। श्रीमतीराज्ञीतूत्यांची
परवशतेच्यानभांत तूंचीआकाशीहोशी
स्वतंत्रते भगवती। चांदणी चमचम लखलखशी।।
गालावरच्याकुसुमीकिंवाकुसुमांच्यागाली
स्वतंत्रते भगवती। तूचजीविलसतसे लाली
तूं सूर्याचेतेजउदधिचेगांभीर्यहि तूंची
स्वतंत्रते भगवती। अन्यथा ग्रहण नष्ट तेंची।।